असंभव को संभव बनाने वाले नेता: जितेंद्र वर्मा की संगठनात्मक एकजुटता की कहानी

असंभव को संभव बनाने वाले नेता: जितेंद्र वर्मा की संगठनात्मक एकजुटता की कहानी

दुर्ग। राजनीति में कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जो सिर्फ पद से नहीं, बल्कि अपने कार्यों और नेतृत्व से इतिहास रचती हैं। दुर्ग भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र वर्मा ऐसे ही एक नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस के गढ़ में निराशा और बिखराव के बीच संगठन को न केवल नई ऊर्जा दी, बल्कि उसे अभूतपूर्व जीत के शिखर तक पहुँचाया। उनके जन्मदिन, 10 अगस्त पर, उनके अतुलनीय योगदान को याद करते हुए यह विशेष लेख प्रस्तुत है।

कठिन समय की चुनौती जब जितेंद्र वर्मा ने दुर्ग भाजपा की कमान संभाली, परिस्थितियाँ बेहद मुश्किल थीं। प्रदेश में भूपेश बघेल की सरकार थी, दुर्ग उनका गृह जिला था और भाजपा के पास पाँच में से एक भी विधानसभा सीट नहीं थी। ऐसे में, पाटन के एक छोटे से गाँव से आए इस नेता के सामने सबसे बड़ी चुनौती बिखरे हुए कार्यकर्ताओं को फिर से एक मंच पर लाना था।गुटबाजी की दीवार तोड़कर गढ़ा विजय का मंत्र जितेंद्र वर्मा ने पद संभालते ही गुटबाजी की दीवारों को गिराना शुरू किया।

उन्होंने हर कार्यकर्ता को बराबर का सम्मान दिया और सबको एक लक्ष्य के लिए एकजुट किया। उनके नेतृत्व में सड़कों पर आंदोलनों की वापसी हुई और कार्यकर्ताओं का जोश दोगुना हो गया। उनके “एक आवाज, एक लक्ष्य” के मंत्र ने भाजपा के खोए हुए आत्मविश्वास को वापस दिलाया।दुर्ग में ऐतिहासिक जीत की पटकथाउनके नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों ने राजनीतिक समीकरणों को हमेशा के लिए बदल दिया। भाजपा ने दुर्ग जिले की चार विधानसभा सीटें—साजा से ईश्वर साहू, अहिवारा से डोमन लाल कोर्सेवाड़ा, दुर्ग ग्रामीण से ललित चंद्राकर, और दुर्ग शहर से गजेंद्र यादव—जीतीं।

इसके अलावा, सांसद विजय बघेल ने पाटन में तत्कालीन मुख्यमंत्री को कड़ी टक्कर देकर इन जीतों की राह आसान कर दी।संगठनात्मक और व्यक्तिगत त्याग की मिसाल जितेंद्र वर्मा का कार्यकाल संगठनात्मक सफलताओं से भरा है। उनके नेतृत्व में दुर्ग भाजपा ने पूरे प्रदेश में सदस्यता अभियान में पहला स्थान प्राप्त किया। मंडल अध्यक्षों के चुनाव में जो एकता और सामंजस्य दिखा, वह भविष्य के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन गया।सबसे खास बात यह है कि नगरीय निकाय चुनावों के दौरान जब उनके पिता गंभीर रूप से बीमार थे और वे खुद भी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे, तब भी उन्होंने चुनावी मोर्चे पर डटे रहकर पार्टी को जीत दिलाई।

उनके इसी त्याग और समर्पण ने उन्हें कार्यकर्ताओं का प्रिय नेता बनाया।एक विरासत जो हमेशा याद रहेगी5 जनवरी को जिलाध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद भी, जितेंद्र वर्मा ने एक मजबूत संगठन, जीत का आत्मविश्वास और सामंजस्य की एक अमूल्य विरासत पीछे छोड़ी है। आज उनके जन्मदिन पर, कार्यकर्ताओं, मित्रों और शुभचिंतकों ने उन्हें बधाई दी। इस मौके पर उन्होंने सेलूद गाँव में वृक्षारोपण कर प्रकृति सेवा का संकल्प लिया और कौही स्थित शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की। पाटन में आयोजित जन्मदिन उत्सव में उमड़ी भीड़ उनके प्रति लोगों के स्नेह और सम्मान को दर्शाती है, जिसे उन्होंने अपने कार्यों से अर्जित किया है।

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