पानी के लिए संघर्ष: बैगा बाहुल्य गांवों में झिरिया, नदियाँ और टूटी उम्मीदें

कवर्धा जिला के पंडरिया ब्लॉक अंतर्गत कुकदुर क्षेत्र के सुदूर वनांचल और पहाड़ी इलाकों में बसे बैगा आदिवासी बाहुल्य गांव इन दिनों भयावह पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। चिलचिलाती गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग परेशान हैं। कहीं झिरिया खोदी जा रही है, तो कहीं एक से दो किलोमीटर तक पहाड़ों से पानी लाना मजबूरी बन गया है।पाइपलाइन है, पर पंप खराबजिन क्षेत्रों में पाइपलाइन बिछाई गई है, वहां के मोटर पंप हफ्तों से खराब पड़े हैं।

गांववाले डब्बे, बाल्टी लेकर घंटों लाइन में लगे रहते हैं। शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में टैंकर से पानी मंगवाना पड़ रहा है।बासा टोला की गंभीर स्थितिग्राम पंचायत कांदावानी के आश्रित गांव बासा टोला में 300 से अधिक बैगा आदिवासी निवास करते हैं। यहां केवल एक हैंडपंप है, जो जनवरी से ही बंद पड़ा है। ग्रामीण बरगद के पेड़ की जड़ से रिसते पानी से मटकी भरते हैं, जिसमें आधा घंटा लगता है। दो किलोमीटर दूर पहाड़ के नीचे श्रमदान से झिरिया खोदी गई, लेकिन चट्टान निकलने से पानी नहीं मिला ।

ठेंगाटोला में टंकी बंद, लोग नदी पर निर्भरठेंगाटोला में बनाई गई पानी टंकी महीनेभर से खराब है। यहां के लोग एक किलोमीटर दूर नदी से पानी ला रहे हैं। भल्लिनदादर, बाहपानी, सेदूरखार जैसे गांवों में भी हालात चिंताजनक हैं।कुआं स्वीकृति की फाइलें धूल खा रही हैंतेलियापानीधोबे मोहल्ले के लोग झिरिया का पानी पीने को मजबूर हैं। पंचायत ने कुआं स्वीकृति के लिए जनपद पंचायत पंडरिया में प्रस्ताव भेजा है, पर अब तक मंजूरी नहीं मिली है।

इन गांवों में विकराल संकटढेपरापानी, बासाटोला, बाहपानी, बसूलालूट, देवनपटपर, चाटा, बीरुलडीह, गभोड़ा, भल्लिनदादर, ठेंगाटोला, सेदूरखार, धुडसी, पकरीपानी, कुंडापानी, महारानी टोला, सेज़ाडीह, भाकूर, बांगर, रुखमीदादर, चाउरडोंगरी, रही दाढ़— जैसे दर्जनों गांवों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है।प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे मेंहर साल गर्मियों में पानी भेजने की बात करने वाला प्रशासन इस बार पूरी तरह से नदारद है। ग्रामीणों की उम्मीदें अब भी सरकारी सहायता की ओर टिकी हैं।

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